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28 जनवरी 2014

राजनीति पर एक सटीक व्यंग्य - जिसके हम मामा हैं

एक सज्जन वाराणसी पहुँचे | स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता हुआ आया | 
“मामा जी! मामा जी!”—लड़के ने लपक कर पैर छूए | 
वे पहचाने नहीं , बोले –‘तुम कौन?’
‘मैं मुन्ना | आप पहचाने नहीं मुझे ?’
‘मुन्ना?’ वे सोचने लगे |
’हाँ, मुन्ना | भूल गए आप मामा जी | खैर कोई बात नहीं इतने साल भी तो हो गए |’
‘तुम यहाँ कैसे ?’ ‘मैं आजकल यही हूँ |’
‘अच्छा!’ ‘हाँ’
मामा जी अपने भांजे के साथ वाराणसी घूमने लगे | चलो कोई तो साथ मिला | कभी इस मन्दिर , कभी उस मन्दिर , फिर पहुँचे गंगा घाट | सोचा नहा लें |
‘मुन्ना नहा लें ?’
‘जरुर नहाइये मामा जी | वाराणसी आये हैं और नहायें नहीं, यह कैसे हो सकता है |’
मामा जी ने गंगा में डुबकी लगायी | हर-हर गंगे | बाहर निकले तो सामान गायब , कपड़े गायब , लड़का भी गायब |
‘मुन्ना .......ए मुन्ना |’ 
मगर मुन्ना वहाँ हो तो मिले | तौलिया लपेट कर खड़ें हैं |
‘क्यों भाई, आपने साहब मुन्ना को देखा है?’
‘कौन मुन्ना ?’ 
‘वही जिसके हम मामा हैं |’
‘मै समझा नहीं |’
‘अरे जिसके हम मामा हैं वो मुन्ना |’
वे तौलिया पेटे यहाँ से वहाँ दौड़ते रहे | मुन्ना नहीं मिला |


भारतीय नागरिक और भारतीय वोटर के नाते हमारी यही स्थिति है मित्रों | चुनाव के मौसम में कोई आता है और हमारे चरणों में गिर जाता है | मुझे नहीं पहचाना! मैं इस चुनाव का उम्मीदवार| होने वाला एम०पी० | मुझे नहीं पहचाना | आप प्रजातंत्र कि गंगा में डुबकी लगाते हैं | बाहर निकलने पर आप देखतें हैं कि वह शख्स जो कल आपके चरण छूता था , आप का वोट लेकर गायब हो गया है | समस्याओं के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़ें हैं | सबसे पूँछ रहें हैं | करो साहब वह कहीं आपको नज़र आया ? अरे वही वोटर जिसके हम मामा हैं | पाँच साल इसी तरह तौलिया लपेटे , घाट पर खड़े बीत जाते हैं |   

यह कहानी हिंदी के श्रेष्ठ व्यंग्यकार शरद जोशी के व्यंग्य-संग्रह से है |

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