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9 अप्रैल 2013

खग उड़ते रहना


खग उड़ते रहना जीवन भर !
भूल गया है तू अपना पथ , और नहीं पंखो में भी गति ,
किन्तु लौटना पीछे पथ पर , अरे मौत से भी है बदतर |

खग उड़ते रहना जीवन भर !
मत डर प्रलय-झकोरो से तू ,बढ़ आशा-हलकोरों से तू ,
क्षण में अरि–दल मिट जायेगा, तेरे पंखो से पिसकर |
खग उड़ते रहना जीवन भर !

यदि तू लौट पड़ेगा थककर अंधड़ काल-बवंडर से डर ,
प्यार तुझे करने वाले ही ,देखेंगे तुझको हँस हँस कर |
खग उड़ते रहना जीवन भर !

और मिट गया चलते-चलते मंजिल पथ तय करते-करते,
खाक चढ़ाएगा जग , उन्नत भाल और आँखों पर |
खग उड़ते रहना जीवन भर !

                                                                            गोपाल दास नीरज द्वारा रचित ..

7 फ़रवरी 2012

जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना....


जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए ।

नई ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन-स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण-द्वार जगमग,
उषा जा न पाए, निशा आ ना पाए।

जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यों ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए।

जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए ।

मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ़ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आएँ नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे हृदय में उजारा,
कटेगे तभी यह अँधेरे घिरे अब
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए।

जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए ।

गोपालदास नीरज द्वारा रचित


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