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2 अप्रैल 2012

भाग्य बदलते देर नहीं लगती !

एक मछुआरा था । उस दिन सुबह से शाम तक नदी में जाल डालकर मछलियाँ पकड़ने की कोशिश करता रहा , लेकिन एक भी मछली जाल में न फँसी ।

जैसे -जैसे सूरज डूबने लगा , उसकी निराशा गहरी होती गयी । भगवान का नाम लेकर उसने एक बार और जाल डाला । पर इस बार भी वह असफल रहा . पर एक वजनी पोटली उसके जाल में अटकी । मछुआरे ने पोटली निकला और टटोला तो झुंझला गया और बोला -' हाय ये तो पत्थर है !' फिर मन मारकर वह नाव में चढा ।

बहुत निराशा के साथ कुछ सोचते हुए वह अपने नाव को आगे बढ़ता जा रहा था और मन में आगे के योजनाओं के बारे में सोचता चला जा रहा था । सोच रहा था 'कल दुसरे किनारे पर जाल डालूँगा । सबसे छिपकर ...उधर कोई नही जाता ....वहां बहुत सारी मछलियाँ पकड़ी जा सकती है ... '

मन चंचल था तो फिर हाथ कैसे स्थिर रहता ? वह एक हाथ से उस पोटली के पत्थर को एक -एक करके नदी में फेंकता जा रहा था । पोटली खाली हो गयी । जब एक पत्थर बचा था तो अनायास ही उसकी नजर उसपर गयी तो वह स्तब्ध रह गया । उसे अपने आँखों पर यकीन नही हो रहा था , यह क्या ! ये तोनीलमथा |

मछुआरे के पास अब पछताने के अलावा कुछ नही बचा था | नदी के बीचोबीच अपनी नाव में बैठा वह सिर्फ अब अपने को कोस रहा था ।

प्रकृति और प्रारब्ध ऐसे ही न जाने कितने नीलम हमारी झोली में डालता रहता है जिन्हें पत्थर समझ हम ठुकरा देते हैं।



13 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!!!!!!!!!!!!

    बहुत बढ़िया...........

    निराशा भी अकसर दुर्भाग्य लाती है....

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  2. बहुत अच्छी कथा .... उसके भाग्य में नहीं थे कीमती पत्थर

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  3. सच कहा ... जो मिले उसका स्वागत करना चाहिए ... पर ये भी सही है की भाग्य में नहीं हो तो कुछ नहीं मिलता ...

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  4. सही कहा ...भाग्य बदलते देर नहीं लगती ....

    बहुत अच्छी लघु कथा ....

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  5. बहुत सही कहा आपने इस प्रस्‍तुति के माध्‍यम से ... आभार ।

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  6. सुंदर सन्देश देती कथा. किस्मत कभी भी बदल सकती है.

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  7. भाग्य बदलते देर नहीं लगती सुंदर सन्देश देती कथा

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