एक पहुंचे हुए
सन्यासी का एक शिष्य था, जब भी किसी मंत्र का जाप करने बैठता तो संख्या को खडिया से दीवार पर लिखता
जाता। किसी दिन वह लाख तक की संख्या छू लेता किसी दिन हजारों में सीमित हो जाता।
उसके गुरु उसका यह कर्म नित्य देखते और मुस्कुरा देते।
एक दिन वे उसे पास
के शहर में भिक्षा मांगने ले गये। जब वे थक गये तो लौटते में एक बरगद की छांह बैठे, उसके सामने एक युवा दूधवाली दूध बेच रही थी, जो आता उसे बर्तन में नाप कर देती और गिनकर पैसे
रखवाती। वे दोनों ध्यान से उसे देख रहे थे। तभी एक आकर्षक युवक आया और दूधवाली के
सामने अपना बर्तन फैला दिया, दूधवाली मुस्कुराई और बिना मापे बहुत सारा दूध उस युवक के बर्तन में डाल दिया, पैसे भी नहीं लिये। गुरु मुस्कुरा दिये, शिष्य हतप्रभ!
उन दोनों के जाने के
बाद, वे दोनों भी उठे और
अपनी राह चल पडे। चलते चलते शिष्य ने दूधवाली के व्यवहार पर अपनी जिज्ञासा प्रकट
की तो गुरु ने उत्तर दिया,
'' प्रेम वत्स, प्रेम! यह प्रेम है, और प्रेम में हिसाब कैसा? उसी प्रकार भक्ति भी प्रेम है, जिससे आप अनन्य प्रेम करते हो, उसके स्मरण में या उसकी पूजा में हिसाब किताब
कैसा?'' और गुरु वैसे ही
मुस्कुराये व्यंग्य से।
'' समझ गया गुरुवर। मैं समझ गया प्रेम और भक्ति के इस दर्शन को।
बहुत खूबसूरत बात कही....
जवाब देंहटाएंसच है प्रेम कोई व्यापार नहीं जहाँ हिसाब हो...
लाजवाब!!!!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,,......
जवाब देंहटाएंmy resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
वाह ... सत्य कहा ... प्रेम और भक्ति में हिसाब नहीं होता ... अच्छी कथा ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर वाणी !प्रेम से सभी कुछ जीता जा सकता है !
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने !
हटाएं..........:)
जवाब देंहटाएंkitna sahi kaha ..prem mae hissab kaesa ..wah
जवाब देंहटाएंDivine and true!
जवाब देंहटाएंgahan asar chodati hui katha ...!!
जवाब देंहटाएंabhar.
बेहिसाब प्रेम..अति सुन्दर . शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंhttp://vangaydinesh.blogspot.in/2012/02/blog-post_25.html
http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/03/blog-post_12.html
इस कथा ने अंतर्मन को हिला दिया.... 'जाप करने वालों के हाथ से माला छूटकर गिर पड़ेगी यदि उन्होंने इस कथा को सुन लिया.'
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने ..
हटाएं