एक आदमी था जो मेले में गुब्बारे बेंचकर अपनी जीवन यापन करता था | उसके पास सभी रंग लाल, हरा, नीला, काला, पीला और पीला आदि के गुब्बारे हुआ करते थे | जब भी उसका व्यापार धीमा पड़ता , वह एक हीलियम से भरा गुब्बारा हवा में छोड़ देता और जब बच्चे गुब्बारे को हवा में उड़ते हुए देखते तो खरीदना शुरू कर देते | इस प्रकार वो व्यापार को पुनः तेज कर लेता था |
एक दिन जब वह गुब्बारे में हवा भर रहा था तो उसने अनुभव किया की उसके जैकेट को कोई पीछे से खींच रहा है | उसने पीछे मुड़कर देखा तो एक छोटा बच्चा पीछे खड़ा था और उसने पूछा - अगर आप ये काला वाला गुब्ब्बारा हवा में छोड़ देंगे तो यह उड़ेगा | तब वह आदमी सहानुभूतिपूर्वक बोला - क्यों नहीं , ये रंग की वजह से हवा में नहीं उड़ता, इसके हवा में उड़ने की वजह ये है की इसके अन्दर क्या है |
यही बात हमारे जीवन के लिए लागू होती है कि हमारे अन्दर क्या है और वो है हमारा मनोभाव या दृष्टिकोण| जो हमें ऊँचाइयों तक ले जाता है |
बहुत बढ़िया है ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय बधाई ।।
क्या बात है, उत्कृष्ट
जवाब देंहटाएंसच कहा, प्रसन्नता मन में जो होती है..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कथा...
जवाब देंहटाएंबाहरी आवरण तो मात्र दिखावा है...
आभार
अनु
बहुत सुंदर प्रेरक कथा,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : बस्तर-बाला,,,
हमारे अन्दर का हमारा मनोभाव या दृष्टिकोण ही हमें ऊँचाइयों तक ले जाता है |
इस बोध कथा सहित आपके ब्लॉग की पिछली तीन-चार पोस्ट पढ़ी ...
सबके लिए बधाई और आभार !
हम्म बहुत खूब ... अंतस को ऊंचा उठाना जरूरी है ....
जवाब देंहटाएंसच कहा ...
सुंदर प्रेरक कथा.....
जवाब देंहटाएंअंतस् में अब झाँक
और स्वयम् को आँक