पथ मेरा आलोकित कर दो ।
नवल प्रात की नवल रश्मियों से
मेरे उर का तम हर दो ।।
मैं नन्हा सा पथिक विश्व के
पथ पर चलना सीख रहा हूँ,
मैं नन्हा सा विहग विश्व के
नभ में उड़ना सीख रहा हूँ ।
पहुँच सकूं निर्दिष्ट लक्ष्य तक
मुझको ऐसे पग दो पर दो ।।
पाया जग से जितना जब तक
और अभी जितना मैं पाऊँ,
मनोकामना है यह मेरी
उससे अधिक कहीं दे जाऊं ।
धरती को ही स्वर्ग बनाने का
मुझको मंगलमय वर दो ।।
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा रचित
नव आशा का संचार करता मनमोहक गीत द्वारिका जी का ... आभार पढवाने का ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...........
जवाब देंहटाएंसांझा करने का शुक्रिया
सादर.
प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना,बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,.....
जवाब देंहटाएंRECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
RECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
sunder bhav
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसीखना और परहित की चाहत करना
ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए.