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30 मार्च 2013

चतुर कौआ और साँप

एक नदी के किनारे बरगद का एक वृक्ष था| उस वृक्ष पर घोंसला बनाकर एक कौआ रहता था| वृक्ष की कोटर में एक सर्प रहता था| जब भी मादा कौआ अन्डे देती थी , वह सर्प उन्हें खा जाता था| कौआ बड़ा दुखी था| वह सर्प की दुष्टता के लिए उसे दण्ड देना चाहता था| वह सोचता रहता था कि उस काले भयंकर सर्प से कैसे छुटकारा पाया जाये|

नदी के तट पर एक सुन्दर घाट बना हुआ था| जहाँ पूर्णिमा के दिन राजकुमारी नदी में स्नान करने आती थी| एक दिन कौआ बरगद के पेड़ पर दुखी मन से बैठा हुआ था| उसी समय उसने देखा कि राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ नदी में स्नान करने आ रही हैं| 

घाट पहुँच कर उन्होंने अपने वस्त्र आदि सामान रख दिए| राजकुमारी ने अपना मोतियों का हार भी उतार कर वहीँ रख दिया और अपनी सखियों के साथ नदी में स्नान करने लगी| कौआ को तुरन्त एक तरकीब सूझी| वह बरगद की डाली से काव-काव करता हुआ उड़ा| और राजकुमारी के मोतियों के हार को चोंच से पकड़ कर पेड़ की उस कोटर में डाल दिया जहाँ काला सर्प रहता था| राजकुमारी की एक सहेली ने यह सब देख लिया | शीघ्र ही स्नान करने के बाद राजकुमारी और उनकी सखियाँ हार लेने के लिए बरगद के वृक्ष के पास पहुँची| परन्तु वृक्ष के कोटर में काले भयंकर साँप को देखकर डर गयीं| राजकुमारी ने निश्चय किया कि वह महल पहुँच कर सैनिकों को भेज देंगी और वे सर्प को मारकर कोटर से मोतियों का हार निकाल लेंगे| ठीक ऐसा ही हुआ सैनिकों से कोटर से हार निकालने के लिए सर्प को मार दिया और राजकुमारी को हार सौप दिया|

इस प्रकार कौवे ने अपनी चतुरता से अपने शत्रु से बदला ले लिया और बिना किसी भय की प्रसन्नतापूर्वक रहने लगे|

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