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13 अप्रैल 2012

भिखारी का धर्मसंकट

एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला। चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल लिए। पूर्णिमा का दिन था, भिखारी सोच रहा था कि आज तो मेरी झोली शाम से पहले ही भर जाएगी। वह कुछ दूर ही चला था कि अचानक सामने से उसे राजा की सवारी आती दिखाई दी। भिखारी ख़ुश हो गया। उसने सोचा, राजा के दर्शन और उनसे मिलने वाले दान से सारी ग़रीबी दूर हो जाएगी। जैसे ही राजा भिखारी के निकट आया, उसने अपना रथ रुकवाया।

लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले, अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और भीख की याचन करने लगे। भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि या करे। ख़ैर, भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला और जैसे-तैसे कर उसने जौ के दो दाने निकाले और राजा की चादर पर डाल दिए।
 
राज चला गया। भिखारी मन-मसोसकर आगे चल दिया उस दिन उसे और दिनों से ज्यादा भीख मिली थी फिर भी उसे ख़ुशी नहीं हो रही थी। दरअसल, उसे राजा को दो दाने भीख देने का मलाल था बहरहाल, शाम को घर आकर जब उसने झोली पलटी, तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। उसके झोले में दो दाने सोने के हो गए थे। वह समझ गया कि यह दान की महिमा के कारण हुआ था बहरहाल, उसे बेहद पछतावा हुआ कि काश! राज को और जौ दान करता।

अवसर ऐसे ही लुके-छिपे ढंग से सामने आते हैं। समय रहते व्यक्ति उन्हें पहचान नहीं पाता और बाद में पछताता है।

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्रतीक के माध्यम से आपने बाद को प्रभावी तरीके से समझाया है ... बहुत अच्छी लगी ये कहानी ...

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  2. बहुत बढ़िया कथा....................
    अपने बेटे को भी पढ़ाई......
    शुक्रिया
    अनु

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  3. शिक्षाप्रद सुन्दर कहानी!...आभार!

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  4. सही है अच्छे अवसर बार-बार नही आते। और जब आते हैं आदमी पहचान नही पाता। अच्छी शिक्षाप्रद कहानी।

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  5. कहानी का दूसरा अनुच्छेद फिर से पढ़ें... स्पष्ट नहीं है... कहीं कुछ जरूर छूट गया है...

    स्पष्ट नहीं हो पाया है.

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