सर्दी को दे दो विदाई ,
बसंत की है ऋतु आई।
हवा सौरभ लेकर आई,
फूलों ने जिसे लुटाई।
बागों में बहार है,
भौंरों की गुंजार है।
तितली की भरमार है,
कोयल की पुकार है।
देखो तो उस ओर,
कैसे सुन्दर नाचे मोर,
कोई कैसे होगा बोर,
चिड़िया का जब है शोर।
खेतों में गेहूं चना,
सरसों रंग हल्दी सना,
मधुमक्खी का काम बना।
हम भी ढके बदन,
बसंती पहने हैं वसन ।
रंगों का सुभ मिलन,
रंग लगाता है फागन।
गफूर स्नेही द्वारा रचित
.
जवाब देंहटाएंलोक गीत-सी सहजता और वाक्य-विन्यास है …
ख़ूब !
गफ़ूर स्नेही जी का आभार !