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31 जुलाई 2013

कीमती पत्थर

एक युवक कविताएँ लिखता था, लेकिन उसके इस गुण का कोई मूल्य नहीं समझता था | घरवाले भी उसे ताना मारते रहते कि तुम किसी काम के नहीं, बस कागज काले करते रहते हो | उसके अन्दर हीन-भावना घर कर गयी| उसने एक जौहरी मित्र को अपनी यह व्यथा बतायी| जौहरी ने उसे एक पत्थर देते हुए कहा – जरा मेरा एक काम कर दो | यह एक कीमती पत्थर है | कई तरह के लोगो से इसकी कीमत का पता लगाओ , बस इसे बेचना मत | युवक पत्थर लेकर चला गया| वह पहले एक कबाड़ी वाले के पास गया | कबाड़ी वाला बोला – पांच रुपये में मुझे ये पत्थर दे दो |


फिर वह सब्जी वाले के पास गया | उसने कहा तुम एक किलो आलू के बदले यह पत्थर दे दो , इसे मै बाट की तरह इस्तेमाल कर लूँगा | युवक मूर्तिकार के पास गया| मूर्तिकार ने कहा – इस पत्थर से मै मूर्ति बना सकता हूँ , तुम यह मुझे एक हजार में दे दो | आख़िरकार युवक वह पत्थर लेकर रत्नों के विशेषज्ञ के पास गया | उसने पत्थर को परखकर बताया – यह पत्थर बेशकीमती हीरा है जिसे तराशा नहीं गया | करोड़ो रुपये भी इसके लिए कम होंगे | युवक जब तक अपने जौहरी मित्र के पास आया , तब तक उसके अन्दर से हीन भावना गायब हो चुकी थी | और उसे एक सन्देश मिल चुका था |

मोरल : हमारा जीवन बेशकीमती है , बस उसे विशेषज्ञता के साथ परखकर उचित जगह पर उपयोग करने की आवश्यकता है| 

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